अत्यंत घिनौना काम किया तमिलनाडु पुलिस ने क्या सजा देंगे मुख्यमंत्री

19 जून को तमिलनाडु के तूतीकोरिन शहर में एक बाप बेटा जो मोबाइल की दुकान करते थे और लॉकडाउन का उन्होंने उल्लंघन किया। पिता की उम्र 59 साल और बेटा 31 साल। पुलिस दोनों को उठाकर ले गई। कसूर यह कि लॉकडाउन में दुकान खुली मिली और फिर चैथे दिन हस्पताल में परिवार को उनकी लाशें मिल गईं। यह सरकारी क्रूरता की हद है। यह सरकारी कत्ल है। मेरा तमिलनाडु के मुख्यमंत्री जी से यह कहना है कि अपराधियों को ऐसी सजा दें। पुुलिस जो कानून व जनता की रक्षक है, उसका काम  केवल डंडा चलाना नहीं। भारत के प्रधानमंत्री जी से और विशेषकर के गृह मंत्री जी से मेरा निवेदन है कि पुलिस के ऊपर कोई ऐसा नियंत्रण रखें कि पुलिस जब चाहे जिसको चाहे उठा कर ले जाए यह ना हो सके। आज पुलिस में रिश्वत भ्रष्टाचार का बोलबाला पूरे देश में है। मेरा यह सवाल है कि पुलिस हमारी रक्षा के लिए है या आम आम आदमी के साथ ज्यादती करने के लिए। खासकर गरीब जिनका कोई राजनीतिक अस्तित्व नहीं है, सिफारिश नहीं है वे तो पुलिस तंत्र के आगे मच्छर मक्खी की तरह बेबस हैं। जब चाहे उन्हें मसल दें, उठा कर ले जाएं, चालान कर दें
पीट दें या हवालात में बंद कर दें। पंजाब में जो अपनी आंखों से मैंने देखा कि बिना लिखा पढ़ी के सीआईए स्टाफ में ले गए, पीटा, हथकड़ी लगाई और अगले दिन हमने उन्हें छुड़वा लिया। अमृतसर की हाल ही की घटना है। एक समझदार बेटा पुलिस के इसी व्यवहार के कारण आत्महत्या को मजबूर हुआ। प्लस टू का बच्चा एनसीसी कैडेट्स व सेना में जाना चाहता था, पर पुलिस की ज्यादती से मौत को गले लगा गया। कौन जिम्मेवार है इसका? आज तक कितने लोगों को दंड मिला।
भारत सरकार यह बताए कि पूरे देश में पिछले 10 वर्षों में हिरासत में कितनी मौतें हुईं और इसके लिए जिम्मेवार कितने लोगों को दंड दिया गया। भारत में तो यह रोज की बातें हैं। हम केवल अमेरिका की तरह बड़े बड़े भवन नहीं बनाना चाहते, अमेरिका की तरह आम नागरिकों की इज्जत भी चाहते हैं।
ध्यान दीजिए भारत के गृह मंत्री जी, प्रधानमंत्री जी और देश के सोए हुए मानव अधिकारों के ठेकेदारोंकृ यहां सरकारी दफ्तरों में मानव अधिकारों के बड़े बड़े अधिकारियों जरा सोचो।

लक्ष्मीकांता चावला