इन मामलों में यह साफ़ दिखाई देता है कि कभी दबंग, कभी बाहुबली और कभी रॉबिनहुड कहे जाने वाले ये माफ़िया डॉन एक ख़ास तरीक़े से आगे बढ़ते हैं और एक ख़ास ढंग से ही उनका अंत भी होता है।
इसका पैटर्न ये है कि ये अपराधी किसी एक संसाधन पर ग़ैर–क़ानूनी तरीक़े से क़ब्ज़ा जमाते हैं, मामला कहीं ज़मीन, कहीं रेत, कहीं रेलवे के ठेके, कहीं मछली पकड़ने, तो कहीं कोयला निकालने का होता है. अवैध धंधा चलाने के लिए राजनीतिक संरक्षण चाहिए होता है, जबकि राजनेता चुनाव जीतने के लिए इनके बाहुबल का इस्तेमाल करते हैं, इसमें अक्सर जाति का एंगल भी शामिल होता है।
कई बार ये माफ़िया सरगना कई सीटों पर चुनाव जितवाने और हरवाने की हैसियत में होते हैं, ये माफ़िया सरगना पार्टियों के प्रति वफ़ादारी सत्ता में बदलाव के साथ बदलते रहते हैं, उनकी गाड़ियों पर अक्सर उन्हीं पार्टियों के झंडे होते हैं जो सत्ता में होती है।
ये या तो गैंगवार में मारे जाते हैं या पुलिस मुठभेड़ में, जो कभी असली होती है तो कभी नक़ली. कई बार माफ़िया सरगना तिकड़म लगाकर लंबे समय तक अपनी दौलत और जान बचाने में कामयाब भी हो जाते है।
ताज़ा कथित मुठभेड़ पर सवाल उठ रहे हैं और यहां तक कहा जा रहा है कि विकास दुबे प्रकरण में कई बड़े नेताओं के नाम आ सकते थे, लेकिन विकास दुबे की मौत के साथ ही अब ये सारे राज़ दब गए हैं.
यही कहते हुए मुख्य विपक्षी पार्टियों ने उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी बीजेपी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा है कि “दरअसल ये कार नहीं पलटी है, सरकार पलटने से बचाई गई है.”
वहीं कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा है कि “अपराधी का अंत हो गया, अपराध और उसको संरक्षण देने वाले लोगों का क्या?”
इस तरह की घटनाओं के बाद अक्सर यही सवाल उठता है कि ‘अपराध और उसको संरक्षण देने वाले लोगों का क्या?