एसजीपीसी ने ‘सब-कमेटी,सब कुछ मिटटी’ की बनी धारणा से बाहर निकलंने की शुरू की कवायद

267 पावन स्वरूपों की जांच जत्थेदार से करवाने के आग्रह के पीछे नए पंथक विवाद से बचने का प्रयास
एसजीपीसी व विधान सभा चुनाव से पहले उठे नए धार्मिक विवाद सुखबीर बादल के लिए नई चुनौती
एसजीपीसी ने जांच के लिए बनाई कमेटी,खुद ही कमेटी से कर लिया किनारा

अशोक नीर
अमृतसर।
चार वर्ष पूर्व इतिहासिक गुरुद्वारा श्री रामसर साहिब से गायब हुए 267 पवन स्वरूपों के बाद पंथक कटघरे में खड़ी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इस मामले की जांच श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार की सरपस्ती में करवाने के किए आग्रह के पीछे एक गहरी धार्मिक व राजनीती पैंतरेबाजी है।एसजीपीसी के इतिहास में किसी भी जांच के लिए कमेटियों का गठन किया गया,उनके परिणाम कभी भी सार्थक नहीं निकले।पंथ में यह आम धारणा है की एसजीपीसी द्वारा गठित की गई कमेटियां मुद्दे को ठंडे बास्ते में डाल देती है।इसी लिए एसजीपीसी द्वारा गठित की गई सब- कमेटियों को सिख  ‘सब कुछ मिटटी’ की संज्ञा देते रहे हैं।
बरगाड़ी बेअदबी कांड व कोटकपूरा में दो सिख नोजवानो की शहादत के बाद अपना पंथक  वोट बैंक गवां चुके शिअद(बादल) के लिए अब किसी तीसरे धार्मिक विवाद में फंसने की कोई गुंजाईश नहीं है।एसजीपीसी व पंजाब विधान सभा चुनाव से पहले सिख मानसिकता के  साथ जुड़े इस मुद्दे पर एसजीपीसी की किरकरी हो रही थी।चार वर्ष पूर्व हुए इस मामले को दबाने के लिए तत्कालीन शिअद(बादल) के अध्यक्ष व उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल एक बार फिर पंथक विवाद में उलझते दिख रहे है।बेअदबी व बहिबलकालां कांड के बाद विवादों में फंसे बादल परिवार ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी जत्थेदार पर डाल कर एसजीपीसी को इस विवाद से दूर रखने की एक कोशिश की है।
शिअद से बागी हुए सुखदेव सिंह ढींडसा ने सचखंड श्री हरिमंदर साहिब में माथा टेकने के बाद दो टूक कहा था की एसजीपीसी की नाक के नीचे रोज श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी हो रही है।वह बादल परिवार के काळा कारनामों का कच्चा चिठा खोलेंगें।ढींडसा की इस घोषणा के बाद एसजीपीसी इस संवेदनशील मामले की जांच से पीछे हट गई है।
इसके साथ ही कभी बादल परिवार के अति नजदीक रहीं एसजीपीसी व शिअद के पूर्व अध्यक्ष पंथ रतन मास्टर तारा सिंह की दोहती बीबी किरण जोत कौर ने इस मामले में बादल विरोधियों का साथ दिया था।सुखबीर बादल को डर था की कहीं इस मुद्दे पर एसजीपीसी के सदस्य शिअद से बागी न हो जाएं।जत्थेदार को जांच का जिम्मा देकर एसजीपीसी द्वारा बनाई गई रणनीति कितनी कारगर होगी,यह तो समय ही तय करेगा।लेकिन यह स्पस्ट हैं  की जत्थेदार को अपने पद की गरिमा बनाए रखने व श्री अकाल तख्त बादल परिवार के दवाब में नहीं है,इस धारणा से निकलने के लिए ज्ञानी हरप्रीत सिंह पर एक बड़ी धार्मिक जिम्मेदारी आन पड़ी है।इस मामले की जांच के आरोपियों को पंथक कटघरे में खड़ा करने के बाद सिख कौम की संतुस्टी जत्थेदार के भाग्य का फैसला करेगी।